Wednesday, January 02, 2013


मेघ अभी पतझड़ है मेरा
आंसू मेरे अभी झरे है 
तेरे आँचल से भी ज्यादा 
जलकण इन नैनों से निकले है 

यही गिरी थी जल की धारा
शुष्क अधर थे रहे बिखरते
इन अंखियो के सावन में फिर
मिले यहाँ पर सभी बिछड़ते

उम्र तेरे जीवन के सपने
यादें बनकर रहे तरसते
सूनी अंखिया सूना सावन
अधर रहे थे फिर भी हसते

कृते अंकेश

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