Sunday, January 20, 2013

मेरे शब्द तो तुम्हारे प्रेम में रंगे है 
अंतहीन माला कर जाते है फिर दूर कही 
सिमटे है मेरे गीत नहीं 
उलझे कैशो की लटो सरीखे 
माना उलझे है छंद अभी 
लेकिन जाते है अधरों तक 
कहने को जैसे बात नयी 
छिपी हुई मुस्कानों सी 
इनकी भी एक परिभाषा है 
बस नैनो को तकते रहते 
शायद इतनी ही आशा है
उड़ते है तेरे आँचल के संग
तेरी मुस्कानों में घुलते है
तू रहती है जो पास तो रहते
जाने पर तेरे न मिलते है

कृते अंकेश

No comments: