Monday, January 28, 2013

वर्जित पुस्तक का आदर्श वाक्य 
फिर फिर दोहराता तेरे साथ 
उड़ते जाते यह  कैश कपाट 
लहराता तेरा वक्ष विशाल 
सजता जीवन का है उन्माद 
बहता योवन का रस अनायास 
आनंदमग्न हुए दोनों आज 
छलकर स्वप्नों को अपने साथ 

जीवन क्रीडा में मग्न रूप 
तेरे आँचल में सिमटी धूप 
तेरे अधरों के खुले पाश 
बंधित करते है मुझे आज 
फिर सिमट रही देह उलझ रही 
फिर एक रूप बन उभर रही 
फिर उभरा  चेहरों पर आनद भाव 
पाया मानो था स्वर्ग आज 

कृते अंकेश 

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