Friday, January 04, 2013

एक गतिमान जीभ 
शब्द बोलने को आतुर 
में लिखता गया किताबो पर पंक्तिया 
बिना अर्थ समझे और  जाने 
अन्धकार में खीचता गया चित्र 
लकीरों के उन्मादों में फसे भाव विचित्र 
उभरते रहे पन्नो पर बनकर यादें 
खोदा गया समय  जिनके ऊपर 
और दफना दिया गया 
इतिहास के भवन में कही 
इति श्री के लिए ....

कृते अंकेश 

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