Thursday, January 09, 2014


तुम अगर हो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको

मानता हूँ में जिया हूँ
इस जगत की भीड़ में
है नहीं कुछ पास मेरे
इस अनोखे नीड़ में

लेकिन सजाता हूँ जिसे में
पालता आँखो में हूँ
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको

है नहीं  मेरा सहारा
है कहा मेरा किनारा
दे सकू में जो तुझे
है नहीं उपहार प्यारा

लेकिन सजाता फिर पलो की
याद को आँखो में हूँ
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको

में कहा तुझमे जुडूंगा
दूर भी कैसे रहूंगा
पास तुझको ला सकू
है कहा वो भाग्य तारा

लेकिन जियूँगा में गमो की
जोड़ती झिलमिल सी धारा
तुम अगर वो ख्वाब मेरा
तो हक़ीक़त की चाह किसको

कृते अंकेश

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