Sunday, January 05, 2014

उड़ती मिटटी में साँसे ढाल 
बनाया किसने यह इंसान 
कि अपनी पर जब यह आ जाये 
नहीं कुछ इसके आगे तूफ़ान 

छिपाया इसमें कितना नीर 
बनाया इसको कितना धीर 
मगर जब टूटा करता वीर 
नदी ज्यो पर्वत से बहती पीर 

मगर पाया इसने विस्तार
कि जैसे नभ का है यह सार
टूटे चाहे क्यों न कितनी बार
उठा करता यह फिर बन विशाल

कृते अंकेश

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