Thursday, January 16, 2014

लोग कितने अजनबी से हो गये है आजकल, 
दिखते थे जो चेहरे खुशी मे, खो गये हैं आजकल 
रात के पहरे घने क्यों हो गये है आजकल 
संग मिल गप्पे लड़ाते, पल खो गये हैं आजकल 

ढूढ़ते वीरानियो में बैठकर यादों का घर
क्या तुझे है याद फिर वो संग अपना वो शहर
अजनबी से पल थे वो और अजनबी से वो पहर
मिलकर यादों को रंगा था साथ हमने बेखबर 

उस इमारत की कड़ी के टूटे से पत्थर है हम
इक किनारे अब पड़े बिखरे हुए से पल गुमसुम
आज भी हैं ढूंढते खामोशियो के राज यू
ख्वाब हो जैसे सजीदा, उम्मीदे कोई जीवंत

कृते अंकेश

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