Friday, December 30, 2011

तेरे उतारे हुए दिन संभाल कर रखे है यादो में
बहुत कुछ भूला पर यह  फिर भी याद रहे
आज भी जब खुलते है  तो सिलवटे तक नहीं दिखती
लगता जैसे गए रोज़ ही तो उतारा गया था इनको
और संभाल कर रख दिया गया था फिर करीने से उस कौने में
समय के बक्से में बंद करके
लेकिन चाबियाँ भूल जाता हूँ कभी कभी
भटकता हूँ फिर यहाँ से वहां
बाहर भी तो बारिश बस तेरी ही याद दिलाती है
फिर अन्दर आता हूँ तो देखता हूँ
की बक्से पर तो कोई ताला ही नहीं है
शायद अभी भी कोई सोचता है कि इनको फिर से निकाला जायेगा
और दिन को फिर से उतारा जायेगा

कृते अंकेश

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