Monday, December 05, 2011

इंदु क्या छवि तुमने बसायी
निशा श्यामल सी होकर आयी
खेल है या यह कोई पुराना
हूँ  रहा मैं जिससे अनजाना
अब  ढूंढता निज को भटकता
होगी  मिलन की आस क्या
साथ जब तुम ही रहे न
तो भला उन पर विश्वास  क्या

सेकड़ो तारे भले ही
नभ में हो जो टिमटिमाते
घिरती घटा काली घनी है
छोड़ अपने जब है जाते
होना  सवेरा है सुनिश्चित
पर रात का लम्बा सफ़र है
कैसे चलू तू ही बता
मीलो छाया तम का कहर है

कृते अंकेश

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