Saturday, September 24, 2011

नहीं समझ पाती में इनको
इन शब्दों में होगे कई अर्थ भले
मेरा परिचय बस उन अधरों से है
जिसने शायद यह शब्द कहे 
नैनों की भाषा समझाना
क्या इतना मुश्किल  काम कोई
बन अर्थहीन मैं भटकी हूँ
इन शब्दों का न विराम कोई

है शब्द अर्थ  न अर्थ शब्द
जीवन एक विहंगम नृत्य बना
क्या पास दूर क्या दूर पास
स्वप्नों को क्या हुआ पता


था जिन नैनों को  मैंने जाना
वह बंद पलकों में खोये कही
अब तस्वीर निहारा करती हूँ
अधरों की हसी है सोयी कही
नहीं समझ पायी में इनको
इन शब्दों में होगे कई अर्थ भले
मेरा परिचय बस उन अधरों से है
जिसने शायद यह शब्द कहे
 कृते अंकेश 
 
 

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