Friday, September 16, 2011

ओस की बूंदों को सहेजे  है धरा 
गगन रात भर क्यों रोया 
मुस्कुराती थी चांदनी
चंद्रमा भी नहीं सोया 
निशा का आँचल 
समेटे था जग पटल को 
अन्धकार ने भी कहा कुछ देखा
कुछ आवाजे 
रात्रि के सन्नाटे में सुनाई दी होगी
पर किसे खबर जब सारा जग ही सोया

कृते अंकेश


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