Saturday, October 01, 2011

समाज 
मनुष्य का विकास 
कुछ अधूरे प्रश्न 
एक प्रतिविम्ब 
जीवित है कल्पना 
एक नए कल की 
बेहतर कल की  
प्रत्युत्तर है अधूरा 
समाज के उस वर्ग के बिना नहीं है पूरा 
जिसे नहीं है पहुच 
आधारभूत आवश्यकताओ की 
पहचान नहीं है संघर्षवाद के सिद्धांतो की
वो तो भटकता है 
एक रोटी की आस में 
भूखे पेट की प्यास में 
एक भूख के होते हुए भला दूसरी भूख कैसे लगेगी 
खाली पेट में विचारो की माला कैसे गुथेगी
पहले खोजना होगा समाधान इस समस्या का 
तभी संभव है हल किसी और प्रश्न का 

कृते अंकेश 

 

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