Thursday, September 08, 2011

सिन्धु वक्ष स्थल पर उभरती   लहरें  इस  आवेग  से 
मानो  चली  हो  सेन्य  शक्ति जैसे संपूर्ण  संवेग से
 नहला  रही है चांदनी वारि के कण कण को यहाँ 
तक रही फिर भी धरा,  क्यों मेरा मिलन अधूरा  रहा 

कृते अंकेश 
  
 

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