Saturday, September 17, 2011

कही यादो के किस्से है 
कभी ख्वाबो में मिलते है 
कही खुशियों के पल गहरे
कभी  दुःख के भी है पहरे
यह डूबी शाम है कहती 
निशा अब पास ही रहती 
नहीं अब दूर तक जाना 
खयालो में न खो जाना  

चिरागों के उजाले है 
बड़ी मुश्किल संभाले है 
पवन की बासुरी बहती 
तिमिर के साथ थी रहती 
यह डूबी शाम का कहना 
घटा को है सदा बहना
नहीं अब भींग तुम जाना 
खयालो में न खो जाना 

उठी फिर रौशनी कैसी 
गगन में दूर तक ऐसी 
अगर यह चांदनी है तो 
चन्द्र को भी साथ था लाना 
यह डूबी शाम का आना 
घटाओ का यु छा जाना 
नहीं अब भींग तुम जाना 
खयालो में न खो जाना 

कृते अंकेश

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