Friday, September 02, 2011

खोकर अपनी सीमाओ को कुछ पाने का मन करता है
किसी नयी मंजिल  से जुड़ जाने का मन करता है
यहाँ तलाशे कितने रस्ते
टेढ़ी  मेढ़ी गलिया भी
अब इन गलियों से बाहर जाने का मन करता है
खोकर अपनी सीमाओ को कुछ पाने का मन करता है

 नहीं थका हूँ नहीं थकूंगा
 मुझको है विश्राम कहा
 लेकिन  जीवन में कभी कभी मनमानी को मन करता है
खोकर अपनी सीमाओ को कुछ पाने का मन करता है

 खिलते चेहरे मुस्कानों में घुला हुआ संगीत कहा
 मुश्किल से थे कभी समेटे वो सारे तेरे गीत कहा
 आज उसी संगीत में जा  मिल जाने का मन करता है
खोकर अपनी सीमाओ को कुछ पाने का मन करता है
किसी नयी मंजिल  से जुड़ जाने का मन करता है

कृते अंकेश 

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