Tuesday, September 06, 2011

रेतसे घर मैं बनाता
फिर पवन से था बचाता
टूटकर गिरना ही था
आ जमी में मिलना ही था

मैं नहीं पर हार पाता
फिर से मिट्टी को उठाता
रंग सपनो के लगाता
उस घडी चलना ही था
आ जमी में मिलना ही था

ओ पवन यह कारवा
मेरा नहीं पर रुक सकेगा
हार भी यहाँ जश्न है
यह सफ़र अब न थमेगा
मौत से भी कह देना ठहेरे
उस घडी ही बात होगी
जब जीत मेरे साथ होगी
जब जीत मेरे साथ होगी

कृते अंकेश 

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