Monday, May 30, 2011

क्षुदा विक्षिप्त तन भूल गया है 
आँखे सब कुछ बोल रही 
 इस  नुक्कड़ के अधियारे  में
तकती आँखों को तोल रही 
कुछ छूटा कुछ  शेष रहा सा
जीवन कुछ भटका सा है 
इस बस्ती का यह  हिस्सा 
अभी  क्षुदा में अटका है 
देखो देर नहीं हो पाए 
कही श्वास न  खो जायें
इस विकास  में मानवता की
कही आस न खो जाये

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