Sunday, May 22, 2011

कहते है विकास एक सतत प्रक्रिया है | प्रत्येक जाति अपने विकास के लिए प्रयत्नशील रहती है | किन्तु विकास एक सापेक्षिक मापदंड है | विश्व परिद्रश्य में सीमित प्राकृतिक एवं मानवीय अर्जित संपदाओ ने सदैव जातियों को प्रतिद्वंदता के लिए प्रेरित किया है | चाहे वह आर्यों का भारतभूमि  में प्रवेश हो अथवा मुगलों का आक्रमण , ब्रिटिश साम्राज्य ने इसी लोभ के चलते विश्व भूमि  को अपनी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा | किन्तु एक बात स्पष्ट  है,  इस प्रतिद्वंदता के अंत में जो पक्ष  स्थायी रहा, वह विकसित होने के लिए शेष रहा, जबकि  दूसरा पक्ष इतिहास के पन्नो में सिमट कर रह गया | अतएव  विकास में स्थायित्व का होना अति  आवश्यक है | स्थायित्व  के भी अनेक पक्ष  हो सकते है  |  सामरिक एवं आर्थिक पक्ष  इनमे सबसे प्रमुख है  |  किन्तु आज के दौर में  यह सभी पक्ष  एक  मुख्य बिंदु कि  ओर संकेद्रित हो गए है और वह है तकनीक, यु तो विकास कि प्रक्रिया में तकनीक ने सदेव अहम् भूमिका निभाई है, किन्तु समय के साथ साथ इसकी भूमिका में अत्यधिक परिवर्तन आया है | यदि हमें अपने विकास को स्थायी बनाना है तो हमें तकनीको के आयाम में सर्वोपरि होना होगा | यह तभी संभव है जब हम अपने शैक्षिक एवं शोध प्रबंध को अतििविकसित बनाये |  किन्तु यहाँ एक प्रश्न  यह है कि हम अपने शोध को संकेद्रित करे या विकेन्द्रित , यहाँ संकेंद्रित से मेरा अभिप्राय लक्ष्य आधारित शोध से है , जो स्वभाभिक्त: हमारे विकास को स्थायी रख सकता है, किन्तु वही हो सकता है कि कुछ महत्वपूर्ण शोध हमारे आयाम से बाहर ही रह जाये | अत: हमें अपने संसाधनों को ध्यान  में रखते हुए  अपनी नीतिया निर्धारित करनी होगी | व्यावसायिक  संस्थानों कि  भागीदारी से यह प्रक्रिया ओर  भी  आसान बनायीं जा सकती है | आशा है हम अपने मिशन में सफल होंगे |

अंकेश

No comments: