Wednesday, June 01, 2011

बारिश तेज़ थी, लेकिन घर पहुचने की जल्दी में था , छाते को हाथ में पकडे पैदल ही चल दिया | मानसून की बारिश का भी पता नहीं , आये तो महीनो नहीं आये और अब आई तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है | सडको के गड्डे भी बारिश के पानी में उभर कर सामने आ गए है और भ्रष्टाचार की कलई खोल रहे है | आतें जातें वाहनों के पहिये गड्डो में फसकर फुहारों की ऐसी  धार छोड़ जातें है, जो कपड़ो पर अगर पड़ी, तो दाग बनकर आने वाले कई सालो तक इस मानसून की याद दिलाये | पानी भी तो  अनोखा होता है, जब मिलता है, तो हम कीमत नहीं समझते, जब नहीं मिलता, तब  तरसते है | छातें के कवच को चीरती हुई दो चार बूदें गालो तक  आ गयी | जो स्थान आंसूओ के लिए सुरक्षित  ह,ै  आज बारिशो कि बूदें वहा जश्न मना रही है  |  कहते ही है समय बड़ा बलवान | पक्षी भी अचानक आई वर्षा से आश्चर्यचकित है , पंखो को फडफड़ाते हुए कोलाहल मचा रहे है, उनके पंखो  से झरती हुई बूदो में सूर्य की अनेको आभाये देखि जा सकती है | धन्य  है सापेक्षिकतावाद, सत्य भी  द्रष्टिकोण पर आधारित होता है | वरना दो आखे, हजारो सूर्य, वो भी एक ही समय में, लेकिन पानी की उन बूंदों में यह भी संभव है | घर नजदीक आ गया, बारिश भी मंद हो गयी, जैसे  उसे एहसास हो गया हो  कि गंतव्य नज़दीक ही है |  

कृते अंकेश

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