Thursday, May 19, 2011

दुःख
चिर परिचित समुचित अनुचित
लगता यह विचित्र
है स्वभाभिक
है आदि अनंत
यह काल भ्रमन्त
अपराधिक मन
समुचित संकुचित
दुःख
चिर परिचित समुचित अनुचित
व्याधि ग्रसित
नर मन विचलित
क्षण भंगुर तन
अस्थिर अस्मित
यह जीव तरन्ग
वह नग्न बदन
है सूर्य किरण
अर्जित अर्पित 
दुःख
चिर परिचित समुचित अनुचित
समसार व्यथा
संसार कथा
सर्वत्र यहाँ
दर्शित हर्षित
वह  विद्व यहाँ
जो जान सका
सापेक्ष समर
सब कुछ निर्भर
दुःख
चिर परिचित समुचित अनुचित

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