Saturday, February 15, 2014


जो लोग भीड़ में खड़े होते है
वो भीड़ से उतने ही दूर होते है
भीड़ हमेशा एकांत को तलाशती है
यह प्रकृति का विरोधाभास ही है
कि हम  हर उस चीज़ की कल्पना करते है
जो हमारी पहुच से कोसो दूर है
उड़ना मनुष्य ने सहज ही नहीं सीखा
यही विरोधाभास हमेशा उससे प्रश्न करता  रहा
कि क्या है आखिर वह जिसकी खोज में चले जाते है अनगिनत पक्षी
यही जिज्ञासा ले गयी उसे
असीमित ज्ञान के भण्डार के पास
उसने पंखो को कागज़ पर उकेरा
मष्तिष्क से परिष्कृत किया
और तकनीक के उपयोग से स्व्प्न को वास्तविकता  में बदला
बस कुछ इसी तरह भीड़ ढूंढती रहती है अनगिनत प्रश्न और उनके हल
इसी विरोधाभास के दम पर

कृते अंकेश

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