Monday, February 10, 2014


श्यामल तेरे केशो सी लगती आती हुई  काली घटा
इनकी घुंघराली छवि में कौन सा जादू बसा
है  नयन तेरे सरीखे कोई न पाया यहाँ
पलको ने तेरी सदा इनको छिपाये है रखा
ढूँढता है नभ जिसे वो चांदनी तुझमे छिपी
है अधूरा गीत इसकी रागिनी तुम हो कही
बढ़ रहा यादो से तेरी वक़्त का यह काफिला
उम्र ढल जाए मगर न ढल सकेगा  सिलसिला

कृते अंकेश

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