Thursday, February 13, 2014


यह खिड़की ही मुझे जोड़ती है
उस हक़ीक़त से
जिसमे एक सुबह होती है
दिन निकलता है
शाम ढलती है
चहल कदमी, लोगो के आने जाने के स्वर
बस का हॉर्न, गाडियो की आवाज़
साईकिल की घंटी
लोगो की भीड़ का एकत्रित स्वर
सब कुछ
बता सकता हूँ
बिलकुल ठीक ठीक
कितने पल, घंटो, दिन और वर्षो से बैठा हूँ
इस खिड़की के इस तरफ

कृते अंकेश

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