Tuesday, October 08, 2013


कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में
रही बरसती राते
जग भींगा, मन भींगा
नहीं भींगा में
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

दूंढ़ रही अंखिया
क्या ढूंढें मन अब इसको
जो खोजे निकले मन खोये
फिर कौन तकेगा मन को
आ जा मेघ मल्हार
भिंगो जा
अब मेरे इस तन को
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

तूने क्या जाना
क्या मेरा तेरे पास रहा फिर
में भी कैसा रहा बावरा
खोकर तकता सब कुछ
इंतज़ार में रही बरसती
आँखे खो मुस्काने
मैं खोया किस पल में
अब यह  कौन नयन फिर जाने
कुछ खोया मुझमे
इंतज़ार में खोया खुद में

कृते अंकेश

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