Thursday, October 10, 2013


देख तराशे
तकता मन क्यों
इस मन को क्या पाना खोना
ढूँढ रहा न जाने फिर क्या
इस मन का न कोई ठिकाना
और छोर की बात है कोरी
मन ही जाने मन का गाना
क्या है खोना क्या है पाना
मन का जाने कौन ठिकाना

उड़ता रहा परिंदा ऐसा
मानो जंजीरों से बेसुध
टूटी तस्वीरो से निकला
जैसे कोई कैद कबूतर
इसकी ख्वाइश की सीमाएं
इनका जाने कौन ठिकाना
क्या है खोना क्या है पाना
मन का जाने कौन ठिकाना

कृते अंकेश

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