Saturday, October 19, 2013


शनिवार की शाम
बंद थे दरवाजे हमारे लिए
जो जाते है बाहर
इन चारदीवारियो से
भोजन की भीनी सुगंध
घिरती रही मष्तिष्क में
करती रही असंभव प्रयास
इच्छाओ के परिवर्तन में
दुर्लभ्य तंदुल प्रकार
उभरते चित्र यायावर
प्रखर लेकिन यह विश्वास
रहेंगे आज यही अपने घर

कृते अंकेश

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