Sunday, February 19, 2012

मेरे पिताश्री द्वारा कृत एक उर्दू कविता..... जितनी मुझे याद है वही लिख रहा हूँ ....


मत पूछ की क्या क्या दिन दिखाती है मुफलिसी
की यह वही जाने कि जिस पर आती है मुफलिसी
मुफलिसी कि क्या सुनाऊ क्वारी झिडकिया
खाने को न घर में  न  चूल्हे मैं लकडिया
 तन के कपडे तक ले जाती है मुफलिसी
मत पूछ कि क्या क्या दिन दिखाती है मुफलिसी
............
 ये पंडित और मुल्ला जो कहाते है
मुफलिसी में यह कलमा तक भूल जाते है
कोई पूछे अलिफ़ तो बे बताते है
और जिनके यह बच्चे पढाते है
उनकी तो जिंदगी भर न जाती मुफलिसी
मत पूछ कि क्या क्या दिन दिखाती मुफलिसी 


कृते जिनेश चंद्राकर

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