Sunday, February 19, 2012

उड़ जा पंछी
तुझे फिकर क्या
किसका सपना
तुझे रोकता
तेरी मंजिल
तेरा  रस्ता
खुला आसमा  
रोक टोक क्या


तेरे पंखो में सजते है
इस दुनिया के सपने प्यारे
जा पंछी तू अपनी धुन में
अपने रंगों को अपना ले

यहाँ वक़्त की बड़ी कमी है
 रिश्तो के संग्राम यहाँ है
उलझन में रहते है सपने
पगले अपना  काम कहा है

जिन्हें अभी तक लगता है कि
नशा नहीं उनका तुझको है
बुनने दे उनको कुछ चेहरे
चेहरों की अब किसे फिकर है 


खोकर इन सपनो को अब
चेहरों की मुस्कान बना दे
बहुत मिलेंगे मौके तुझको
आज यहाँ तू रंग सजा दे ..............

कृते अंकेश
 

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