Sunday, February 19, 2012

गद्य बनाम पद्य


मन की अभिव्यक्तियों को पद्य के माध्यम से उकेरना अत्यत्न सरल है, पद्य मन के भावो को बड़ी ही सहजता के साथ व्यक्त करते चले जाते है। वस्तुत: कवि के लिए पद्य स्वभाभिक होते है। जीवन की समरसता को पद्य में सहज ही ढाला जा सकता है । किन्तु पद्य गूढ़ होते है, वह संक्षिप्त होते है । वही गद्य शब्दों का सीधा साधा क्रम होता है, जो बिना किसी लय और ताल के  बहता है। यहाँ बातें आसानी से व्यक्त तो हो जाती है किन्तु मन के स्थान पर मस्तिष्क का प्रतिभाग कुछ अधिक होता है। यहाँ मन से मेरा अभिप्राय मष्तिष्क के उस भाग से है जो कला एवं मनोरजन से संबंधित गतिविधियों का अनुमोलन करता है, जबकि मष्तिष्क से मेरा अभिप्राय तार्किक एवं वैज्ञानिक गतिविधियों में निपुढ़ मष्तिष्क के भाग से है। यही कारण है कि पद्य, गद्य से प्राचीन है। रचनाओ को संचित करने का कोई उपाय न होने के कारण प्राचीन समय में रचनाये कंठस्थ  की जाती थी। पद्य लयबद्ध होने के कारण सहजता से याद हो जाते थे। यही कारण है कि अठाहरवी शताब्दी तक हिंदी साहित्य में पद्य का ही बोलबाला रहा। भारतेंदु हरिश्चंद्र के आगमन के साथ गद्य साहित्य का आविर्भाव हुआ। लेकिन वर्तमान में साहित्य संचय के प्रचुर साधन होने के कारण गद्य साहित्य का प्रबल स्तम्भ बन गया है। समाचार पत्र से लेकर लघु कथाये, हास्य व्यंग, कहानिया, रिपोर्ट एवं अनेको  गद्य विधाए विकसित होती गयी है । लेकिन फिर भी मन के भावो को आज भी गद्य में पद्य कि सहजता से  व्यक्त करना आसान नहीं है।

कृते अंकेश 

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