Tuesday, February 21, 2012

अगर चाहू तो में उस पर्वत श्रखला की चोटियों पर भी जा सकता हूँ
मेरे जोश और उन्माद के पंख पूर्ण रूप से परिपक्व हैं
मैं अँधेरे मैं भी देख सकता हूँ
मेरे अन्दर का साहस रौशनी बनकर सदा मेरे साथ खड़ा है
 
मैं सागर की समस्त उर्जा को अपने में समेटे हुए हूँ
मैं रेत की तरह कही भी उड़ सकता  हूँ
जीवन का सौन्दर्य आज मेरी ताकत है
ख़ुशी , हसी , व्याकुलता, चंचलता , सहजता , सरलता सभी कुछ तो है मेरे पास
फिर भी मैं कितना अकेला हूँ

कृते अंकेश 
 

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