Saturday, February 11, 2012

एक छोटा सा बच्चा
छोड़ खिलोने कहा चला

घूमा दुनिया के मेले में
सुख दुःख के सभी झमेले में
रिश्तो में, यादो में,
जीवन के बाजारों में
रहे तलाशे ज्ञान के पन्ने
फिर से जीने की आशा में

एक छोटा सा बच्चा
छोड़ खिलोने कहा चला

सोया वो सागर के तट पर
खेला वो लहरों के घट पर
पानी के साथ बहा वो भी
अनजान मिलन की आशा में

एक छोटा सा बच्चा
छोड़ खिलोने कहा चला

न जाने कितना सीख गया
हसना रोना भी भूल गया
देखा मैंने उसको जाते
एकांत कही उस आँगन में

एक छोटा सा बच्चा
छोड़ खिलोने कहा चला



वही दूर एक छोटा बच्चा
हाथो को पंख बनाता है
लगता मानो बस उड़ता है
दूर चाँद तक जाता है
उस आँगन के कौने में
थी रही काठ की एक सीढ़ी
जो सटी हुई पत्थर से थी
थी शायद वो थोड़ी टेढ़ी
चढ़ रहा प्यार था उसपर
दुनिया से ओझल होने को
है शेष रहा ही अब क्या
कुछ पाने को या खोने को

एक छोटा सा बच्चा
छोड़ खिलोने कहा चला

और अंत में देखा उसने
एक रेल को आते
सभी खिलोने, छोटे बच्चे
कही दूर थे जाते

न जाने क्या हुआ उसे फिर
वो भी छोड़ चला जग को
देखा था मैंने बस
जाते जाते उस पग को

कृते अंकेश

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