Wednesday, July 02, 2014

कभी उलझकर मुझमे, कभी बिखरकर मेरे बिस्तर पर
कभी समेटकर मेरी पहचान को खुद में
मेरी आत्मा का निशान हो तुम
मेरे तन के प्रेमी ओ मेरे कपडे
मेरी भी जान हो तुम
तुमने ही जाना है मुझको
इतनी नजदीकी से
बिखरे हो तुम आकर मुझ पर
जब बिखरा में जिंदगी से
भूल थी मेरी जो ठुकराया तुमको
फिर भी तुमने अपनाया
झूमे थे तुम साथ ख़ुशी में
दुःख में आ अपनी बाहो में छिपाया
तुझ में छिपकर ही अब मेरी पहचान यहाँ है
ओ प्रिय नग्न मेरी देह तुझ बिन
इसका अभिमान कहा है

कृते अंकेश

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