Wednesday, July 02, 2014

कविता लयबध्द हो
जरूरी नहीं तोड़कर बढ़ सकती है अक्षरो एवं मात्राओ की गिनती
एक विषय पर ही रहे जरूरी नहीं
बदल सकती है अचानक
जैसे प्रेमिका का इंतज़ार करता प्रेमी कल्पना करता है
उसके आने की, न आने की
यह कल्पना ही उसकी कविता है
बीतता हुआ समय उसके शब्द है
विश्व एक मंच और आते जाते लोग श्रोतागण
कविता तो स्वरो की साधना है
प्रार्थना है यह लेखक की
पूजा है कवि की
है कुछ अक्षरो का क्रम उसके लिए
जिसने नहीं जानी कभी इसकी हस्ती

कृते अंकेश

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