Sunday, October 09, 2011

स्वप्न 
आभास स्वतंत्रता  का 
है राज्य मेरा 
न कोई सीमा न कोई बंधन 
उड़ता हूँ  आज़ाद 
परिचित या अपरिचित 
सभी है मेरी ही कल्पनाये 
नहीं है विवशता रहने की हमेशा
मैं ही सृजक मैं ही संहारक
तैरता हूँ निश्चल इस सागर में
है जीवंत यह मेरा स्वप्न

कृते अंकेश

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