Tuesday, October 18, 2011

मैं ह्रदय की बात रे मन
किससे कहू यह शोर सारा
क्या भला मैं व्यर्थ हारा

इस झुलसते विश्व दिन की
है कही क्या रात भी
है घिरी यह कालिमा जो
लाएगी क्या बरसात भी
न दिखाओ बस स्वप्न मुझको 
मैं यहाँ स्वप्नों से हारा 
किससे कहू यह शोर सारा 

अश्रु आँखों में सजाये 
कैसे विजय का ताल दू 
है गहन छायी निराशा
कैसे कहो मैं  टाल दूं 

चिर विषादो के प्रणय में 
क्षुब्ध है जीवन की धारा 
किससे कहूं यह शोर सारा

कृते अंकेश

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