Sunday, August 21, 2011

मेघ गया न  तू उस घट
फिर पत्र भला क्यों भींगा है 
सच बतला मुझको बात है क्या
नैनों ने बरसना कब सीखा है

 धुंधले से टेढ़े  यह अक्षर
आँखों की हकीकत कहते है
 तूने तो चेहरा देखा है 
क्या अधर भी खामोश ही  रहते है

वह  चंचल से दो पग जो तब 
मेरे रस्ते आ जाते थे
क्या राहों ने  उनको देखा
अब भी  है वहा आते जाते

एहसास  नहीं होता मुझको 
मैं इतना   दूर चला आया
खामोश  रही साँसे  अब तक
कागज़ की नमी ने बतलाया

कृते अंकेश

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