Tuesday, August 16, 2011

छोड़ सखी क्या उनसे बोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  
निशा नहीं यह क्षण प्रभात का
बन बावरे फिर क्यों डोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले


जीवन की इन राहों में
जाने कितने मोड़ बने है
किस पथ बिछुड़े थे उनसे तब
किस पथ पर अब नैन मिले है
 मगर कहे क्या समय की सीमा
  नयनो में है अचरच घोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
 भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  

यह बूदे बारिश की देखो
कभी भिंगो जाती थी तन को 
पूरे जोरो से है बरसी
नहीं भिंगो पाई पर मन को
 कैसे इन बातो को अब
 उस भूले भटके उर में खोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों  राज़ यह खोले  

देखो यह ढलता सूरज भी
दिनकर को आभास दिलाता
निशा निकट है, इंदु प्रेम से
श्रृष्टि का श्रृंगार कराता
 हाय मगर कहा भाग्य हमारा
 किस चंचलता को अब तोले
छोड़ सखी क्या उनसे बोले
भूले वो क्यों राज़ यह खोले

कृते अंकेश

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