Saturday, August 13, 2011

इंतज़ार

इंतज़ार में
बीत गए दिन
अब तो ऋतु भी बदली है
कुछ कहते है सावन आया
छायी काली बदली है



कहा छिपी है तेरी आभा
 जीवन का श्रृंगार कहा
मधु था भूल गया होठो को
वह तेरा विस्तार कहा
 तुझसे  खोयी मेरी सुबह
 और यह शाम दुपहरी है
वो कहते बीत गया है अरसा
लगती बीते पल की प्रहरी है

इंतज़ार में
बीत गए दिन
छायी काली बदली है


कृते अंकेश

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