Monday, June 06, 2011

अर्धसुप्त बैचैन सा था न्याय की वो आस में 
क्यों उसे उखेड डाला 
किस प्रलोभन विश्वास  में 
था यदि जो दोष कुछ तो 
न्याय का है मार्ग भी 
न पड़े वरना भुगतना
अन्याय की जो राह चली 


 

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