Wednesday, June 08, 2011

मेरे झरोखे से समय का पता ही नहीं चलता 
 फूलो की खुशबू  भी नहीं आती 
बारिश आकर गुजर भी गयी 
मिटटी की खुशबू कहा मिल पाती 

अब तो अरसा हो गया 
जो भींगा था कभी 
क्या बारिश का पानी अभी भी फैला  है 
या उड़ा ले गयी धूप की तपिश 
 कौन यहाँ रुका  ये जीवन एक मेला है 

कितने रंगों को  समेटे
यह स्म्रतियो  के साये 
तू अभी तक  पलकों में है 
क्या तुझे भी तस्वीर नज़र आये 

यु ही गुजर जाएगी 
समय की यह सदिया 
कभी सम्मुख कभी सपनो में 
बस बनती  रहेगी यह  दुनिया 
   

  

   

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