Friday, June 24, 2011

तेरी तमन्नाओ में वक़्त ही कहा गुजरा 
बस ये झुर्रिया  समय का एहसास  दिलाती है 
खयालो की खलिश  तो अभी तक ज़वा है 
तू ही है जो कभी नहीं आती है 
लगता है अब तो मौसम ने भी ओढ़ी है उदासी 
कहा गयी  बारिश की बूंदे 
खुले आसमान में भी छाया अँधेरा 
खो चुकी  है इंदु किरणे
चला तेरी यादो का मंथन मैं  करने 
हलाहल ही शायद मुझे मिल जाये 
बनू नील कंठ उन यादो से शायद 
मुझे मेरी मंजिल यु ही मिल जाये 


कृते अंकेश


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