Thursday, January 12, 2012

कौन है वो चित्रकार
रचता है जो स्वप्निल संसार
छोड़ता न कोई प्रयत्न
सजाता माधुर्य स्वप्न

क्या किंचित भर उसको आभास
खेल रहा है किसके साथ
है अबोध मन या जीवन
पल भर में कर सकता गर्जन

या वह शिल्पी है प्रखर
जिसने देखे जीवन के हर स्तर
जानता है सुख दुःख हर एक बात
काल को भी देता मूर्त आकार

पर मानव मन की कल्पना विशाल
क्या भान सका उसको अनजान
शून्य पटल पर नभ का चुम्बन
थे सरल रहे कब इसके स्वप्न

(क्रमश:)
(कृते अंकेश)

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