Sunday, January 08, 2012

आँखों का अंतिम निर्णय था
आंसू अब तुम बह जाओ
रात अँधेरी सुप्त भवन है
ऐसे में सब कह जाओ 

 कब तक रोके  पलके तुमको
उनको भी अभ्यास कहा
 देखो जीवन ऐसा ही होता है
तुमको न था आभास  यहाँ

अर्धरात्रि  के अंधियारे में
चहरे की आभा खोती है
उन पलकों से जब दो छोटी
अश्रुधारा रोती है

 कृते अंकेश

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