Sunday, July 31, 2011

अधिकार
सत्य बोलो
क्या यहाँ अधिकार कोई छीनता
था हमारा स्वप्न जो
आज़ाद संसार कोई छीनता
दे दिए थे प्राण भी  
बस जिसकी आस में
वो ख्वाब जो बन सकी हकीकत
वह ख्वाब कोई छीनता


क्यों उठी आवाज़ फिर है
क्या यहाँ कोई जस्न है
आक्रोश से क्यों है भरे कंठ
आँखे  दिखी क्यों  नम है
सोचते क्यों अलग हम
जो चले कल साथ थे
या भूले यहाँ कुछ हाथ कि कल
हम सभी एक हाथ थे

देखो नहीं खो जाये
जो पाया बहाकर था लहू
थे शीश भी हसकर कटाए
निज प्राण की आहुति दी
समझो संभालो कर लो प्रयत्न
न खो सके अधिकार यह
ऐसा न हो हम हार जाये
व्यर्थ हो जाये सारी विजय


 कृते अंकेश

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