Tuesday, July 12, 2011

उड़ चला रे मन कहा तू
देख छायी  काली घटा
मादक पवन बिखरी सयानी
जाल यह कैसा  बुना
रंग धुंधले  से हुए
आगोश में रवि को लिया
ढूढने खामोशिया 
अब  तू  कहा यु  चल दिया
खो चुकी मै दिन को पहले
अब भिंगोती  बरसात हैं
बह गए सब रंग दिल के
आस ही एक  पास है
पर  तिमिर का क्या भरोसा
कब  कहा वो घात दे
तरसे  नयन तुझको तकेंगे
उस घडी  तू साथ दे
देखती धारा समय की  
भींग तन यह बह गया
है बची जो श्वास  तुझमे 
बस यही मेरा बचा
देख घिरती कालिमा
है भेद जीवन का मिटा
 दे  बता क्या मन में तेरे
ले मुझे कहा चल दिया

कृते अंकेश





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