Tuesday, July 26, 2011

जूतों का महत्त्व 

जूता वैसे तो साधारण सी  दिखने वाली एक सामान्य प्रयोग की वस्तु है| लेकिन जूतों की गरिमा मनुष्य के चरित्र में विशेष भूमिका रखती है | सेना से लेकर सेवा तक, जूतों का  अपना एक अलग  ही स्थान है | मनुष्य के इतिहास में भी  जूतों की एक अलग ही पहचान है, जब भगवान राम राजा दशरथ के आदेश पर वनवास गए थे, तो उनके लघुभ्राता भरत ने इन्ही जूतों के वंशज "खडाऊओ" को उनका प्रतीक मानकर शासन  चलाया|   कुछ लोगो का तो यह तक मानना है की आदमी के जूतों को देखकर उसके चरित्र का अनुमान लगाया जा सकता है| इसी के चलते इंटरव्यू हो या कोई बड़ी मीटिंग, हर कोई अपने जूतों को चमकाने मैं लगा रहता है | यहाँ तक की सिने-क्षेत्र में राजकुमार जैसी  हस्तियों  को लोग  उनके जूतों को देखकर ही पहचानते है |

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो जूतों की जरूरत और भी बड गयी है| अकुशल राजनीतिज्ञों एवं  बडबोले  लोगो को प्रत्युतर देने में इनका उपयोग तीव्र गति से बड रहा है |   कुछ सेन्य विशेषज्ञो का मत है, कि जूता वह अनोखी कृति है, जिसे अस्त्र एवं शस्त्र दोनों वर्गों में रखा जा सकता है | सामान्यत: अस्त्र वह हथियार होते है जिन्हें  हाथ  में रखकर वार किया जाता है , जबकि  शस्त्र वह हथियार होते है, जिन्हें फेककर मारा जाता है | लेकिन जूतों की बहुमुखी प्रतिभा  के चलते वह इन दोनों परिभाषाओ में खरे उतरते है |  यदि मनुष्य को सफलता प्राप्त  करनी  है तो आवश्यकता है इस प्रतिष्ठित कृति को भली-भाती समझने की |





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