Wednesday, July 20, 2011

मुद्दे और संवेदनशीलता

भारत एक लोकतंत्र है एवं लोकतंत्र में सभी को अपने मत व्यक्त करने की संपूर्ण स्वतंत्रता है|  लेकिन समाज के कुछ ही लोग विचारो के सृजन से पहले प्रश्न के सभी पहलूओ को महत्व देते है | समाज का एक बड़ा हिस्सा शायद ही अपनी कोई राय रखता है, उसके विचार मुख्यत: सामाजिक
गतिविधियों से प्रभावित होते है | यहाँ सामाजिक गतिविधियों से मेरा तात्पर्य समाज के कुछ चुनिदा लोगो द्वारा दिए स्वतंत्र विचार एवं अन्य लोगो द्वारा उन पर की प्रतिक्रिया से है|  वैसे देखा जाये तो यह प्रक्रिया पूर्णत: वैज्ञानिक है यदि सुचारू रूप से की जाये | लेकिन वही यदि विचारो के सृजन एवं प्रतिक्रिया में लोग अपने स्वार्थ के लिए यदि किसी पक्ष विशेष का समर्थन करने लगे, तो यह प्रक्रिया न केवल हानिकारक अपितु विनाशक भी है | अब चाहे वो मीडिया द्वारा अपनी टी.आर.पी. को बढाने का स्वार्थ हो या राजनीतिक हस्तियों द्वारा अपनी वोटो की रोटियों को सकने का स्वार्थ हो| लेकिन इसका दुष्प्रभाव तब प्रदर्शित होता है जब समाज का एक बड़ा हिस्सा अपने विचारो  के सृजन में उन पक्ष विशेष के मत को सत्य मान कर अपनी राय बना लेता है| यहाँ लोकतंत्र समाज के सृजक  के स्थान पर विनाशक की भूमिका अपना लेता है क्योकि दुष्प्रभाव के चलते बड़े तबके की असत्य राय चुनिदा लोगो के सत्य को दबा देती है|  यहाँ आवश्यकता है विचारको  को एक निष्पक्ष मंच बनाने की, जहा उनका कार्य केवल अपनी स्वतंत्र राय देने के साथ ही नहीं ख़त्म होता, अपितु उन्हें अपनी राय को दबने से बचाना भी होगा| समाज का एक बड़ा हिस्सा उनके मत को समझ सके इसके लिए उन्हें मीडिया से भी जुड़ना पड़ सकता है, लेकिन उन्हें किसी भी राजनीतिक स्वार्थ से पूर्णत: दूर रहना होगा| उन्हें अपने कुछ चंद लोगो के साथ को छोड़ कर आम जनता के मध्य सरल भाषा में अपने विचारो  को समझाना होगा|  कहने में यह बात मात्र आदर्श कथन लगती है, लेकिन  यह आवश्यक है, क्योंकि समाज के प्रत्येक मत का प्रभाव सभी पर पड़ता है, वह चाहे कुछ चंद विचारक हो, जो मुद्दों को समझ सकते है अपनी राय रख सकते है अथवा समाज का एक बड़ा हिस्सा हो जिसे  आसानी से गुमराह किया जा  सकता है|







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