Tuesday, July 19, 2011

वो हरी दूब पैरो के नीचे
मखमल सा एहसास कहा मिलता
इस मिटटी इस पानी में
तेरा सा स्वाद कहा मिलता
खो जाता था में खुशबू में
वो आँगन तेरे हवा थी बहती
अब भूल गया वो खुशबू भी
बस कुछ धुंधली यादें है तेरी

कहते है लेकिन लोग यहाँ पर
मुझमे तेरा ही साया है
तेरे आँचल की छाव मिली
तूने ही साँची काया है
यह रंग रूप सब तेरा है
मेरी तो बस कुछ यादें
जो तेरे सायें में बीती
वो चंद सुहानी सी रातें 

कृते अंकेश






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