Friday, December 03, 2010

स्मृति

अधूरी सी रही  जो ख्वाइश कभी 
वो आज जीने की ख्वाइश हुई
छिपे रंग बीते समय के तले
तस्वीरो को रंगी बनाने की ख्वाइश हुई

ढूँढो  बीता समय वो गुजरा सा कल
कहा बिखरे वो चंचल से पल
वो तेरी हसी अधूरी पज़ल
में भूला बेरंग मौसम की ग़ज़ल

तराशे से मोती वो साथी पुराने
नुक्कड़ की मस्ती कई अफसाने
अधूरी सी ख्वाइश अधूरी सी हस्ती
हकीकत की दुनिया में सपनो की बस्ती

चले संग बहते समय के तराने
किस मोड़ मिलते यहाँ कौन जाने
ख्वाइश ही संजोये चले जा रहे है
अधूरे से सपने पले जा रहे है

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