Friday, December 31, 2010

पलको से ओझल होने को अब  चार कदम ही बाकी है
ढलने वाली है रात अभी
एक  नयी सुबह की  तैय्यारी है
उधडे से कपड़ो में बीता
यह साल रहा घोटालो  का
किसने किसको कितना लूटा
बिखरे संदेशो के हवाले का
न्याय क्षेत्र  भी शक की संज्ञा से बच न पाए यहाँ
लूटमार के अंतर्द्वद में विलुप्त हुआ है सत्य यहाँ
अर्थजगत की तस्वीरो में मेरा भारत उभरा है
खेलजगत की भूमि में  एक नया पेज सा निखरा हैं
आज विश्व की सर्वशक्तिया भारत में आकर टिकती है
अपने बाजारो  के दम पर उनकी अर्थव्यवस्था सुधरती हैं
बन स्वतंत्र ओर न्यायपूर्ण नीति से चलते जायेगे
उम्मीद हैं आने वाले कल  में विकसित भारत बन जायेगे
इससे पहले मेरे क्रम में एक नया वर्ष जुड़ पाए
धन्यवाद करता हूँ सबका
इस  आशा से,
उस कल में हम अपना सर्वत्र परचम लहराये

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